अमर दीक्षित
फर्रुखाबाद, समृद्धि वेब
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कोरोना का रोना देश भर में है। हजारों की भीड़ महानगरों से अपने-अपने घरों के लिए कूंच कर गयी है। कोई पैदल जा रहा है, तो कोई साइकिल पर। सरकार ने बसों की व्यवस्था की तो मौत से बेपरवाह बसों की छतों पर मौत का सफर तय कर रहे हैं। यह सब देखकर तो ऐसा ही लगता है वायरस के वार से ज्यादा भूख का प्रहार है।
पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉक डाउन घोषित किया है। आज लॉक डाउन का चौथा दिन था। महानगरों में काम करने वाले कामगारों से काम छूट गया। रोज कमाकर खाने वालों के पास कितनी पूँजी होगी यह सब जानते हैं। गरीब, मजदूर वर्ग के लोगों को जब भूख से बेहाल कर दिया तो वे अपने-अपने घरों से निकल पड़े। हजारों की संख्या में दिल्ली यूपी बार्डर पर लोगों का जमावड़ा लग गया। छोटे-छोटे बच्चों के साथ खाली पेट जाते महिलाएं पुरुष किसी का भी हृदय द्रवित कर सकते हैं। कोई 300 किलोमीटर का सफर तय कर रहा था तो कोई 700 किलोमीटर का। जाना कहाँ है, रास्ता कहाँ से है कुछ को तो यह भी नहीं पता था। जिन्दगी और मौत के बीच की जंग सड़कों पर दिखाई दे रही थी।

मीडिया ने जब इन यात्रियों का दर्द दिखाया तो उत्तर प्रदेश योगी सरकार की आंखें खुलीं। आनन-फानन में रोडवेज बसों से इन यात्रियों को इनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था की गयी। बसें कम और यात्रा ज्यादा। ऐसे में बसों की छत पर यात्रा करते लोग दिखे। भूख ने मौत का भय इनके दिल से निकाल दिया था। मौके का फायदा उठाकर कुछ प्राइवेट बसें भी इन यात्रियों को ढोने में लग गयीं। मनमाने पैसे वसूले गये। दिल्ली से आये रिंकू मिश्रा ने बताया कि गौतम बुद्धनगर से एटा तक उनसे 500 रुपये प्रति सवारी लिए गए।

इस भागमभाग से लॉक डाउन की धज्जियां उड़ गयी हैं। पलायन कर रहे यात्रियों के साथ कोरोना के गाँवों में घुस जाने की सम्भावना प्रबल हो गयी है। जब प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन घोषित किया था तो यह दायित्व राज्य सरकारों का बनता था कि पलायन कर रहे लोगों को आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराते। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भूखों को खाना खिलाने का दावा कर रहे हैं। अगर उनके दावे सही हैं तो दिल्ली से हजारों लोग क्यों पलायन कर रहे हैं। यात्रियों के पलायन से नहीं लगता कोरोना पर प्रभावी अंकुश लग सकेगा।

 

 

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